कोरोना वायरस: आप कैसे झूठी खबरों को वायरल होने से रोक सकते हो। कोरोना वायरस से जुडी झूठी खबरे इंटरनेट पर फैली हुई है और विशेषज्ञ, लोगो को यह समझा रहे हैं की कैसे
"इनफार्मेशन हाइजीन" का अभ्यास किया जा सकता है। आप क्या कर सकते हैं जिससे झूठी खबरों को फैलने से रोका जा सके।
1. एक बार रुकें और सोचें।
आप अपनी परिवार और दोस्तों की मदद करना चाहते हैं और उनका ध्यान रखते हैं, इसलिए जब भी आपको कुछ नयी सूचना मिलती है - ईमेल से, व्हाट्सएप्प से, फेसबुक से या ट्विटर से - आप उस सूचना या जानकारी को तुरंत फॉरवर्ड कर देते हैं। लेकिन विशेषज्ञो का कहना है कि सबसे पहली चीज जो आपको गलत सूचना को रोकने के लिए करनी चाहिए वह है
"थोड़ा समय ले और सोचें" यदि आपको कोई शक है तो थोड़ा समय ले और खबर की जाँच करें।
2. स्रोत (Source) की जाँच करें।
किसी भी जानकारी को आगे भेजने से पहले कुछ बुनियादी सवाल करने ज़रूरी हैं जैसे जानकारी कहाँ से आई है? अगर जानकारी
"दोस्त के दोस्त से" या
"परिवार के ग्रुप" या
"किसी करीबी" से आई है तो यह एक चिंता का विषय है। हमने सोशल मीडिया मैटर्स में ऐसी ही कुछ ग़लत जानकारियों के बारे में कई रिसर्च की हैं। हो सकता है कि पोस्ट में कुछ चीज़ें सही हों - जैसे उदाहरण के तौर पर
"हाथ धोने को अगर बढ़ावा दिया जाए तो वायरस को फैलने से रोका जा सकता है" लेकिन कुछ दूसरी बातें जैसे
"होम्योपैथिक दवाओं से वायरस खत्म हो सकता है" ऐसी ही कुछ जानकारियाँ नुकसानदायक साबित होती हैं। जानकारी के सबसे विश्वसनीय स्रोत हमेशा से
"विश्व स्वास्थ्य संगठन",
"नेशनल हेल्थ पोर्टल ऑफ इंडिया",
"स्वाथ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय" रहे हैं।
विशेषज्ञ अचूक नहीं हैं लेकिन वे व्हाट्सएप पर किसी अजनबी के दूर के रिश्तेदार की तुलना में बहुत अधिक विश्वसनीय हैं।
3. क्या यह फर्जी/झूठी जानकारी हो सकती है?
सही दिखने वाली जानकारी भी दिखावटी हो सकती है। बहुत हद तक मुमकिन है कि आधिकारिक दिखने वाले अकाउंट के जैसे फर्जी अकाउंट बनाये हो, इसमें न्यूज चैनल या सरकारी एकाउंट्स का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। स्क्रीन शॉट को बदल कर ऐसा बनाया जा सकता है जैसे जानकारी किसी विश्वसनीय सार्वजनिक स्त्रोत से आई हो। हमेशा चेक करें की अकाउंट वेरीफाइड और वेबसाइट जानी मानी है की नहीं। अगर आपको जानकारी खुद से ढूंढने पर न मिले तो वह फर्जी हो सकती है। अगर कोई पोस्ट, वीडियो या लिंक पर शक है तो मुमकिन है वह फर्जी हो सकता है।
फुल फैक्ट (यूनाइटेड किंगडम की एक स्वतंत्र चैरिटी जो तथ्यों की जांच करती है) की उप संपादक क्लेयर मिलने के मुताबिक, फैक्ट चेकर्स ज्यादातर कैपिटल लेटर्स और बेमेल फोंट्स को देखते है और झूठी खबरों की आसानी से पहचान कर लेते हैं।
4. अगर आपको यकीन नहीं है यह सच है? शेयर ना करें।
कुछ भी फॉरवर्ड न करें सिर्फ इसलिए
"क्या पता सच हो", आप फायदे से ज्यादा नुक्सान कर सकते हैं। अक्सर हम चीजों को उन स्थानों पर पोस्ट करते हैं जहां हम जानते हैं कि विशेषज्ञ हैं - जैसे डॉक्टर या चिकित्सा पेशेवर। यह ठीक हो सकता है, लेकिन सुनिश्चित करें कि आप अपने संदेह के बारे में बहुत स्पष्ट हैं। और खास ध्यान रखे - जो फोटो या कॉन्टेंट आप शेयर करते हैं, आने वाले समय में उसका मतलब कुछ और भी हो सकता है।
5. व्यक्तिगत रूप से सभी तथ्यों की जाँच कर लें।
एक वॉयस नोट (ऑडियो) है जो व्हाट्सएप पर प्रसारित हो रहा है। इसमें बोलने वाले व्यक्ति का कहना है कि वह एक अस्पताल में काम करने वाले
"सहकर्मी का मित्र है" से सलाह का अनुवाद कर रहा है। इसे दुनिया भर के दर्जनों लोगों द्वारा बीबीसी को भेजा गया है। लेकिन यह ऑडियो सही और गलत सलाह का मिला जुला है। जब आपको किसी सलाह की लंबी सूची भेजी जाती है, तो उन पर विश्वास करना आसान होता है, क्योंकि आप निश्चित रूप से जानते हैं कि सुझावों में से एक (हाथ धोने के बारे में) सच है। लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता है।
6. इमोशनल करने वाली पोस्ट से सावधान रहे।
जो पोस्ट हमें भयभीत, क्रोधित, चिंतित, या खुश करती है वो अक्सर वायरल हो जाती है।
फर्स्ट ड्राफ्ट (संगठन जो पत्रकारों को ऑनलाइन गलत जानकारी से निपटने में मदद करता है) की शोधकर्ता क्लेयर वार्डले कहती हैं
"डर एक ऐसी चीज है जो गलत खबरों को सबसे ज्यादा फैलाता है" जल्दी कार्रवाई के लिए की गई कॉल लोग में चिंता और भय का माहौल बनाने के लिए ही की जाती हैं - इसलिए सावधान रहें। क्लेयर वार्डले कहती हैं "लोग अपने प्रियजनों को सुरक्षित रहने में मदद करना चाहते हैं, इसलिए जब वे
"वायरस को रोकने के लिए टिप्स देखते हैं" या
"यह हेल्थ सप्लीमेंट लें" तो उनका मकसद अपने प्रियजनों की किसी भी हाल में मदद करना होता है।"
7. पक्षपात के बारे में सोचें।
क्या आप किसी भी चीज को सिर्फ इसलिए शेयर कर रहे हैं क्योंकि वह सच है - या सिर्फ इसलिए क्योंकि आप उससे सहमत हैं? कार्ल मिलर, सेंटर फॉर दी एनालिसिस ऑफ सोशल मीडिया (थिंक टैंक डेमोस) के अनुसंधान निदेशक कहते हैं हम ऐसी पोस्ट शेयर करने की अधिक संभावना रखते हैं जो हमारी मौजूदा यकीन को और ज्यादा बढ़ाता हैं। कार्ल मिलर कहते हैं
"हम ऐसा जब करते है जब हम गुस्से में होते है और अपने आपको थोड़ा कमजोर महसूस करते है" इन सब बातों को पीछे रख कर, हमें केवल उन सभी चीजों को थोड़ा समय देना होगा जो हम ऑनलाइन करते हैं।